मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Monday, September 26, 2011
मंज़िले
उड़ानो की हद मत तय करो अभी आसमान और भी हैं
नाकामी को दिल से इतना मत लगाओ, अभी रास्तो मे मंज़िले और भी हैं
पाने को मंज़िल रास्तों के पैर मोड़ दे ओ! मीत
बन वो राहगीर जिनकी शिद्द्त मे मंज़िले राह खोजती हैं
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