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Thursday, October 24, 2024

तन्हा तन्हा चलते रहे

 तन्हा तन्हा चलते रहे 

एक सफर से हम भी गुजरते रहे।

दिन दिन बुनते रहे कुछ रेशमी धागे

रात  भर गिरह खोलते रहे।।


ना समझा इश्क ने कभी हमें

ना हम समझ सके कभी इश्क को।

इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां

उस तरफ वो चुप्पियां सुनते रहे।।


हाथ थाम कर इस तरह बेबस किया

कि हम ना किसी काबिल रहे।

इस तरह गुज़रा उम्र का सफर

हम राह तकते रहे और वो आते ही रहे।।


मनीषा वर्मा


#गुफ़्तगू

Saturday, September 28, 2024

कंकरीट के जंगल

 हरे भरे वन में जो कंकरीट बोए

अब उन्मुक्त श्वास कहाँ से होए


जलन आँखों मे और दिल घबराए

सम विषम से कितना सुलझाए


आग लगाए पराली जलाए

धुंआ धुंआ शहर हो जाए


कहीं बाढ़ कहीं सूखा कहर बरपाए

मूरख इशारा बूझ ना पाए


समय बीता जाए व्यर्थ जन्म गंवाए

त्राहि त्राहि कर प्राण गंवाए


मनीषा वर्मा

Friday, September 13, 2024

उसके आने की उम्मीद बनी रहती है

 ख्यालों में एक नदी सी बहती है

चांदनी भी रात भर उदास रहती है

भीतर बाहर एक सर्द नमी सी बनी रहती है

वो आता है ले कर लौट जाने की तारीख

घर में एक कमी सी बनी रहती है।।


मुस्कुराहटें उदास सी खिली रहती हैं

बना तो लिया है आशियां अपना

आने वालों की कमी सी रहती है 

 शायद ना बन सकी उसके रुकने की कोई वजह

 हर वक्त उसे जाने की पड़ी रहती है।।


बिछी चादर पर एक सिलवट सी पड़ी रहती है

बिस्तर के किनारे एक किताब अधूरी सी रखी रहती है

भोर आती है चुपके से आंगन में फैली धूप के साथ

रात भर उसके  आने की आहट सी लगी रहती है।।


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू

Thursday, September 12, 2024

जो उसने मेरे सामने आइना रखा,

 तैश में आ कर जो उसने मेरे सामने आइना रखा,

मुझे उसका अक्स भी उसी में उतरा दिखा।।


खोल  कर रख दिया उसने मेरे आगे जातियों का पुलिंदा

मुझे ऊपर से वह शख़्स बहुत हल्का दिखा।।


मैं घूम आया उसके कहने पर सब कूचे गालियां

मुझे इस शहर में  कोई  ना अपना दिखा।।


मनीषा वर्मा


#गुफ्तगू

Friday, May 24, 2024

तुमसे कितनी बातें हैं करनी

 अपने आप में तुमसे कितनी बातें करती हूं

फिर भी कितनी बातें रह जाती हैं तुमसे से कहनी

तुम्हारे जवाब मालूम हैं फिर भी कितना कुछ है कहना

चलती हूं रुकती हूं मन ही मन गुनती हूं

और धप से रोक लेती हूं जुबां से फिसलते शब्द।।


कितनी बार लिखीं तुम्हें छोटी छोटी पर्चियां 

कभी लिखूंगी एक लंबी सी चिट्ठी भी।।

लेकिन तब तक मेरे इन ख्यालों को तय करना है 

शब्दों के एक लंबे सेतू का सफ़र 

कुछ विराम कुछ प्रश्नचिन्ह और कुछ संबोधनों

में पिरोना है  इन्हे और सौंप देना है तुम्हे।।

विचारों का क्या! 

ये तो बेलगाम घोड़े से हैं एक आध छलांग में 

तुम तक पहुंच जाते हैं 

लेकिन जब शब्दों में इन्हें रोपूंगी ना,

तब तुम सुनना या पढ़ना 

मेरे प्रेम की अबूझी भाषा

जानना मुझे और विस्मय से आह्लादित हो जाना।।


तब तक मेरी चुप्पी पढ़ सको अगर  तुम

तो चांद को कह देना मेरी छत पर उतर आए।।


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू