थोड़ा सा पागल हो जाना
स्वीकार मुझे
तुम बिन जीना कितना दुश्वार मुझे।।
बिना पैर के चलती हूं
बिना हंसी के हंसती हूं
तुम बिन कहां कोई व्यवहार मुझे ।।
ना आसमां कोई सिर पर मेरे
ना पैरों तले ज़मीन मिले
तुम बिन त्रिशंकु सी हर ठौर मुझे ।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
कुछ एहसास बेहद खास होते हैं जिन्हें सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है।
ReplyDeleteसस्नेह।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब....
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