माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
हम जो भंवर में पले भंवर में ही रह गए
ना ज़मीं तक पहुंचे ना आसमां छू सके ।।
तूफ़ान ही नसीब थे तूफान ही मिले
ना तिनके मिल सके ना सहारा बन सके ।।
लिख कर मिटाते रहे जी कर मिटते रहे
ना अपनी कह सके ना उनकी सुन सके ।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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