होती कितनी प्यारी
त्यौहार की बेला सारी
वो गुज़रा वक्त अगर
लौट आया होता
उस घर की टूटी मुंडेरों पर
एक दीप जलाया होता
तुलसी तो कब की सूख चुकी पर
उस देहरी पर शीश नवाया होता
उस सूने दरवाज़े पर
वंदनवार सजाया होता
माँ के उस छोटे से मंदिर में
बाल गोपाल बैठाया होता
कितने सजते रंगोली
के ये रंग सारे
हमने तुमने अगर
हर त्यौहार संग मनाया होता
मनीषा
त्यौहार की बेला सारी
वो गुज़रा वक्त अगर
लौट आया होता
उस घर की टूटी मुंडेरों पर
एक दीप जलाया होता
तुलसी तो कब की सूख चुकी पर
उस देहरी पर शीश नवाया होता
उस सूने दरवाज़े पर
वंदनवार सजाया होता
माँ के उस छोटे से मंदिर में
बाल गोपाल बैठाया होता
कितने सजते रंगोली
के ये रंग सारे
हमने तुमने अगर
हर त्यौहार संग मनाया होता
मनीषा
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