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Monday, July 21, 2014

दुःशासन का कहीं तिरस्कार नही है

अब उन आँखों में हाहाकार नही है
द्रौपदी का चीर लुट चुका
कृष्ण का इस नगरी में वास नही है
दुःशासन  का कहीं तिरस्कार नही है

अब नाचती फिरती है हर आँख में दरिंदगी
सीता के तिनके में अब आड़ नही है
लक्ष्मण का इस नगरी में वास नही है
रावण का कहीं तिरस्कार नही है

उतर  आई है हर आँख में वहशत इतनी
माँ  बेटी का भी अब सम्मान नही है
बंधे किन कलाइयों में राखियाँ
पद्यमिनी अब यहां हुमायूँ का वास नही है

मनीषा

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