भाँवरों के भंवर में
धीरे धीरे बंटती रही
थोड़ी थोड़ी मैं
भटकन लिए पाँव में
फिरती रही आवारा सी मैं
तुझमे सिमट कर इक पल में
खुद में बिखर गई मैं
मनीषा
धीरे धीरे बंटती रही
थोड़ी थोड़ी मैं
भटकन लिए पाँव में
फिरती रही आवारा सी मैं
तुझमे सिमट कर इक पल में
खुद में बिखर गई मैं
मनीषा
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