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Monday, July 21, 2014

आम हो गई हैवानियत

लूटी है अस्मत , हुआ है कत्ल
आम हो गई हैवानियत
पड़ी लाश सड़  रही
मर चुकी इंसानियत
धो डालो  अब ये दाग खून के
चलो मय्यत निकाली जाए
चूक चुके आंसू सब
कुछ मोम  पिघलाया जाए
चलो इक जुलूस निकाला जाए
मन को अपने फिर  बहलाया जाए

कर भी क्या सके कोई
आँख में शर्म अब उतरती नही
ये वो भूमि जहाँ
कोई गंगा उतरती नही
मर चुकी है कितनी गुड़िया , ज्वाला, दामिनी
खून पर कहीं खौलता नही
धो डालो  अब ये दाग खून के
चलो मय्यत निकाली जाए
चूक चुके आंसू सब
कुछ मोम  पिघलाया जाए
चलो इक जुलूस निकाला जाए
मन को अपने फिर  बहलाया जाए


सत्ता के गलियारों में खनक
टूटी चूड़ियों की गूंजती नहीं
कलेजे में माओं के हूक भी उठती नही
पहन ली हैं चूड़ियाँ  सभी भाईयों ने
नींद भी पहरेदारों की खुलती नही
मर चुकी है आत्मा कानूनदारों की
धो डालो  अब ये दाग खून के
चलो मय्यत निकाली जाए
चूक चुके आंसू सब
कुछ मोम  पिघलाया जाए
चलो इक जुलूस निकाला जाए
मन को अपने फिर  बहलाया जाए

मनीषा 

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