फिर खिले होंगे गुलाब उस छत पर
फिर आया होगा मौसम बहार का
तेरे आंगन
झूले की वो पींग एक मेरे नाम की
एक तेरे नाम की
हवा छू कर हिलाती तो होगी वो शाख
आम की
सखि तू भी तो छिपाती होगी
मुस्कुरा कर नमी आँख की
मनीषा
फिर आया होगा मौसम बहार का
तेरे आंगन
झूले की वो पींग एक मेरे नाम की
एक तेरे नाम की
हवा छू कर हिलाती तो होगी वो शाख
आम की
सखि तू भी तो छिपाती होगी
मुस्कुरा कर नमी आँख की
मनीषा
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