मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Thursday, April 3, 2014
कुछ अधूरी
कुछ जी गई कुछ मर गई मैं
फिर थोड़े थोड़े हिस्सों में बंट गई मैं
तुझसे मिल कर जो जुदा हुई मैं
तो कुछ तो पूरी रही कुछ अधूरी रही मैं
मनीषा
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