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Friday, April 25, 2014

ज़रूरत

ज़रूरत तो किसी बात की कभी नही होती
ज़रूरत ज़िंदगी में फिर भी कम नही होती
शामिल हूँ एक उलझन सी आपकी महफ़िल में
देखा जाए तो ज़रूरत आपको तो मेरी भी नही होती



मॉँग लेती हूँ तुझे रोज़ टूटते सितारों से 
देखती हूँ कब तलक़ रखती है 
ये कायनात भी तुझे जुदा मुझ से 
मनीषा

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