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Monday, April 14, 2014

तुम और मैं

तुम और मैं
मैं और तुम
इस चाँद के नीचे
साथ साथ पर अलग अलग
अपने ही दायित्व में बंधे
ख़्वाब  संजोते- भूलते -खोए से
दायरे खींचते दूर दूर चलते
पास पास रहते
अपने अपनोे में पराए से
तुम और मैं
मैं और तुम
जैसी मै  वैसे तुम
जैसे तुम वैसी मैं
एक दूसरे के पूरक
एक दूजे बिन अधूरे
कुछ अधूरे तुम
कुछ अधूरी मैं
तुम और मैं
मैं और तुम
अधूरे अधूरे
पूरे पूरे
दूर कितने
पास कितने
मनीषा 

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