कहते हैं मिला है खंडहर कहीं उजड़ी बस्ती का
उतरा तभी ख्यालों में मेरे नक्श उसी खुदाई का
पड़ा होगा किसी पिंजर पर पहरन मेरे बदन का
किसे पता नसीब भी था इसे पर्दा कफ़न का
उधार की सी ज़िंदगी है , मिटटी से बनी मिटटी है
मिट मिट कर बनते रहना है मुक्क़दर किसी किसी का
शोख हवाओं में लहराता फिरता है जो आज अक्स मेरा
कैसे भूलूँ मुक्द्दर में है इसके फ़क़त ज़मीं का ही सीना
by me मनीषा
उतरा तभी ख्यालों में मेरे नक्श उसी खुदाई का
पड़ा होगा किसी पिंजर पर पहरन मेरे बदन का
किसे पता नसीब भी था इसे पर्दा कफ़न का
उधार की सी ज़िंदगी है , मिटटी से बनी मिटटी है
मिट मिट कर बनते रहना है मुक्क़दर किसी किसी का
शोख हवाओं में लहराता फिरता है जो आज अक्स मेरा
कैसे भूलूँ मुक्द्दर में है इसके फ़क़त ज़मीं का ही सीना
by me मनीषा
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