जनतंत्र है सब स्वतंत्र हैं
अच्छे दिन हैं भाई कहने दो
नोट जो रखे थे माँ ने कनस्तर में
हुए काले से गुलाबी रहने दो
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
सब्जी बेच रही जो माई
उसके घर में नहीं पकती रोटी ढाई
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
जी एस टी, सी एस टी ढो रही जनता
हो गया बाज़ार सस्ता कह रहे नेता
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
व्यापारी को मिलता नहीं नोट
रूपये का गिर गया मोल
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
डूब रहा पटना दरभंगा
जल रहा रोहतक दिल्ली हरियाणा
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
लड़ रहा खाली पेट जवान
भूखा मर गया किसान
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
एक एक सांस को तरसी जनता बेचारी
उठाई अपनों की अर्थियां कंधो पर भारी
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
छूटे रोजगार, बंद हो रहे सब दफ्तर
होती नही कहीं कमाई खाली सब कनस्तर
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
गिरता जा रहा रोज बाज़ार
रूपया रोए ज़ार ज़ार
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
बांचते पोथी पत्री हाकिम हजूर सब कहते
नहीं है सिर्फ ज़िम्मेदारी हमारी
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
कमीटियाँ बन गईं ढेर सारी
मर गई कब की आँख की शर्म सारी
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
नौकर सेठ सब हुए कंगाल
साहिब कहते चल रहा अमृत काल
आ गए अच्छे दिन भाई कहने दो
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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