धान सी उग जाती हैं
जाने किस मिट्टी से बन जाती हैं
ये बेटियाँ
हर दर से जुङ जाती हैं
रौनक किसी घर की भी हों
हर रंग मे रम जाती हैं
ये बेटियाँ
ये बेटियाँ
हर दर से जुङ जाती हैं
रौनक किसी घर की भी हों
हर रंग मे रम जाती हैं
ये बेटियाँ
पीहर की फुलवारी चहकाती हैं
पापा का संबल भइया की राखी
माँ का आँचल बन जाती हैं
ये बेटियाँ
कुछ चटपटी कुछ तीखी सी
पानी में नमक सी घुल जातीं हैं
ये बेटियाँ
घर में हाथ बटाती हैं
सम्मान की अंगुली पकड़ चाँद तक चढ़ जाती हैं
ये बेटियां
झूले की पींगो पर सावन गाती हैं
बाबुल की चुप्पी
माई की मजबूरी समझ जाती हैं
ये बेटियाँ
बाबुल की चुप्पी
माई की मजबूरी समझ जाती हैं
ये बेटियाँ
कितने स्वप्न तकिए पर काढ़ जाती हैं
होठों पर मुस्कान कोरों पर अश्रु लिए
चुपचाप विदा हो जाती हैं
ये बेटियाँ
होठों पर मुस्कान कोरों पर अश्रु लिए
चुपचाप विदा हो जाती हैं
ये बेटियाँ
चिरइया सी उङ जाती हैं
अपनी जीवन गति को अल्पविराम दे
दोनों कुल की लाज निभा जाती हैं
ये बेटियाँ
मनीषा
अपनी जीवन गति को अल्पविराम दे
दोनों कुल की लाज निभा जाती हैं
ये बेटियाँ
मनीषा
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