पूज्य भी अपूज्य हो जाता है
खंडित हो तो ईश्वर भी
बेघर हो जाता है
बहुत मान से आई थी जो मूरत
देख पवित्रता ली थी जो चुनर
वटवृक्ष तले आश्रय पाता है
आरती का दीप जब बुझ जाता है
महकता गूगल जो राख हो जाता है
किसी उदास मुंडेर से ढुलकाया
जाता है
चढ़ देवालय पर जब पुष्प सूख जाता है
गहन अंधेरे में रास्ते की गर्द हो जाता है
खंडित हो तो ईश्वर भी
बेघर हो जाता है
मनीषा
No comments:
Post a Comment