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Tuesday, December 9, 2025

कोई इस कदर रंजीदा नहीं होता।।

 कुछ तो मजबूरियां रही होंगी उसकी

यूं ही कोई इस कदर रंजीदा नहीं होता।।


गिला उसका भी ठीक ही था मुझसे 

मैं क्यों किसी बात पर संजीदा नहीं होता।।


ग़फ़लत में अधूरा रह गया इश्क़ का फ़साना,

हम समझते रहे, वो हमसे ख़फ़ा नहीं होता।।


जानकर दूरियाँ बढ़ा लीं होंगी उसने,

वरना यूँ ही तो वो जुदा नहीं होता।।


चेहरे से तबियत पहचान लेते अगर 

समझते, कोई अपना हो कर भी अपना नहीं होता।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

2 comments:

  1. मर्मस्पर्शी रचना।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ दिसंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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