इक तेरी खामोशी है एक मेरा इंतज़ार।
ना वो टूटती है, ना ये ख़त्म होता है।।
मिलते हैं लोग क्यों बिछड़ने को सदा।
ना मालूम इश्क में ये कायदा क्यों होता है।।
तेरी रूखस्त तक रुकी थी मैं वहीं तुझे देखते।
ना जाने तुझ से अब मिलना कब होता है।।
लिखती हूं मिटाती हूं रोज वही एक पैगाम।
ना जाने तुझ से कहने का हौसला कब होता है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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