एक बात अनकही सी कहे जा रहे है
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
लम्हा लम्हा साथ बैठे शाम गुजरती जा रही है
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
काम निकाल कर मिलने के जो बहाने बना रहे हैं
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
नजरें चुरा रहे हैं वो जिस बेचैनी को छिपा रहे हैं
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
चलने को दोनो कहते हैं फिर भी देर किए जा रहे है
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
ये जो वक्त बेवक्त की गुफ्तगू में जो कर रहे इशारे हैं
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार १२ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ओह आज देखा फिर चूक गई मैं माफी
Deleteवाह! लाजवाब!!
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete