तुम जब जब सच बोलोगे
तब तब दागे जाओगे एक अनाम गोली से।।
तुम्हारा सच उन्मुक्त है विशाल है
उन्हें पसंद हैं झुके शीश और जुड़े हाथ।।
ये क्या तुम ऊपर बैठना चाहते हो? बराबरी में?
ना ऐसा मत करना समानता जब तक अखबारी है
मंजूर है, प्रशंसनीय है
जब जब निचली ज़मीन तक घर द्वार तक
तब तब निंदनीय हो जाएगी
इसलिए इसे कागज़ी उद्घोषणाओं तक रहने दो।।
याद रहे, सच बस उच्छवासों में ही बोलना है
धीरे से फुसफुसा कर।।
कहीं तुम निकल मत पड़ना झंडे ले कर,
चढ़ मत जाना मीनारों पर,
और चिल्ला चिल्ला कर दोहराना तो बिलकुल मत।।
तुमको क्या प्यारी है काल कोठरी और जल्लादों की मार?
ना! तुम देखो चुप रहो, चाहे तो मुंह सिलवा लो
जीने के लिए शर्त है ये हाकिमों की
तुम जब जब सच बोलोगे
तब तब दागे जाओगे एक अनाम गोली से।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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