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Friday, September 23, 2022

गुमनाम याद

 मैं नहीं सोचती तुम्हें,

मन कांप जाता है,सोच कर ,

कैसे! हवा सा एक व्यक्तित्व

गुम हो गया देखते ही देखते।

अभी थे,अब नहीं हो

कहीं नहीं हो, धरा से आकाश तक

तुम्हें पुकार लें , खोज लें

तुम.... नहीं लौटोगे।

तुम्हे एक बार छूने , महसूस करने 

और सुनने की चाह लिए

जीवन रीत जाएगा,

लेकिन तुम नहीं आओगे।

इसलिए तुम्हें नहीं सोचती

लेकिन तुम हावी रहते हो,

और किसी ज़िद्दी सूर्य किरण से 

आ बैठते हो मन के अंधेरे कोनों में 

और चमकते दर्पण से,

मिला देते हो मुझे मेरी विगत स्मृतियों से।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

8 comments:

  1. ये स्मृतियाँ ही राह जाती हैं । मन के बेचैन भाव जस के तस उकेर दिए हैं । मार्मिक अभिव्यक्ति ।

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  2. हृदय स्पर्शी रचना,एक-एक शब्द बोलता हुआ।

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  3. 👌🏻👌🏻👌🏻🙃

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  4. जो स्मृतियों में बसे हो उन्हें सोचने की जरूरत नहीं पड़ती।
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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