लहज़े में आपके नमक थोड़ा ज़्यादा है
जुबां पर थोड़ी मिठास रखिए हुजूर।
दुनिया जो झुक के सलाम करने लगे
तो ज़रूरी है मिजाज़ अपना नरम रखिए हुजूर।
बाज़ार लगा चुका है कीमत सबकी
ईमान खरीदने के लिए जेब में दाम रखिए हुजुर।
चलाने को काम मिल तो जाते हैं मजूर
हुनर आंकने के लिए पारखी नज़र रखिए हुजूर।
लिख तो देते हैं आप उनकी शान में कसीदे
ज़रा अदब से घर के बुजुर्गों को साथ रखिए हुजूर।
लगा तो रहे हैं तोहमते ज़माने भर में
रिश्तों को निभाने का कोई कायदा तो रखिए हुजूर।
आसमां में उड़ना अच्छा है परिंदों की मानिंद
मगर अच्छा हो कि ज़मी के लोगों से भी वास्ता रखिए हुजूर।
वादा तो कर रहे हैं मोहब्ब्त में ताजमहल बनाने का
सिर छुपाने के लिए एक अदद मकां तो रखिए हुजूर।
लाए थे बड़े शौक से हाथी पर ब्याह कर मुझे
अब बुहारने को घर एक कामवाली तो रखिए हुजूर।
उम्र पैंसठ की हो चुकी है अब जनाब आपकी
इतराने को ना बाल ये काले रखिए हुजुर।
बुरा जो मानिएगा आप होली पर दिल्लगी का इतना
हाथ से गुजिया तो तुनक कर प्लेट पर वापिस रखिए हुजूर।
बुला तो लिया है मुशायरे में मुझे सुनने को ग़ज़ल
अब हाथ पर मेरे कुछ मेहनताना तो रखिए हुजूर।
कुर्सी ना निकल जाए कहीं फिर हाथ से
कांख में दबा कर विपक्ष का एक आध घोटाला रखिए हुजूर ।
और बहुत पड़ेंगे जूते अगर कहा कोई और मिसरा
यहां से चुपचाप निकलने का कोई रास्ता रखिए हुजूर।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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