मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Friday, May 1, 2015
दर्द जब हद से गुज़र जाए
आप ही अपनी दवा हो जाए
ये ज़नाज़ा -ए -आशिक है या रब
महबूब की गली से जो गुज़र जाए
तो जान -ए -तरब में बदल जाए
मनीषा
जान -ए -तरब -life of joy
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