Pages

Thursday, June 26, 2014

इक गुनाह का पल दे दो

हक़ तो नहीं  कि  तुम्हे
अपना  कह सकूँ
तुम्हारी हो रहूँ  इतना
गुरूर  भी नही

अपनी पनाहों में
इक  गुनाह का पल दे दो
बस दुआ का इक  हक दे दो
मेरी रूह को आ जाए चैन
'गर मेरे ज़नाजे को कांधा दे दो

मनीषा 

No comments:

Post a Comment