उम्र के उस पड़ाव पर खोया था आपको
जिसकी याद नही है मुझे खुद को
बस सुनती आई हूँ बातें माँ से
बुआ से, मौसी से, दादी से आपके हर अपने से
मुझ तीन माह की बच्ची को सुलाने को
सड़कों पर देर रात टहलते थे आप कैसे
कंधा आपका चूस चूस कर दिया था मैंने लाल कैसे
स्कूल में दस पैसे कैंटीन के लिए
माँगने भाग आती थी मैं रोज़ कैसे
कुछ यादें है आपकी जैसे
रोज़ रोज़ मेरा सहेलियों में आपका रुआब दिखा इतराना
प्रेयर बंक कर आपके ऑफिस में छुप जाना
ऑफिस से थक कर आना फिर तैराकी के लिए जाना
वो भइया के साथ रोज़ सुबह दौड़ लगाना
वो भइया के साथ रोज़ सुबह दौड़ लगाना
मुझे वो पहली बार बस में अकेले भेज देना
और आपके वो लेक्चर
इस कान से सुन उस कान से निकल देना
वो आपका कॉफी फेंटना वो पुलाव बनाना
यार दोस्तों की महफ़िल सजाना
धीमे से कुछ कह ठहाके बिखराना
सच आज भी सबको याद आता है
आज भी जब कोई मिलता है
जब कह आपकी बिटिया पुकारता है
मन उसाँस भर रहा जाता है
जाने विधाता क्या चाहता है
कुछ प्यार के पुष्प आपने छोड़े है
जो हमने बहुत प्यार से रखे हैं
जाने उस पार क्या है
इस पार तो बस केवल अहसास है..... इंतज़ार है
मनीषा
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