ना आता है गुस्सा
ना ही आंसू फूटते हैं
नि:स्तब्ध देखती हूँ
ईश्वर के द्वार पर
जलती चिताओं पर
सत्ता की रोटी पकते
क्या कहूं क्या लिखूं
मन का चीत्कार
उस ईश्वर से भी क्या कहूं
जो आज मूक है
हर तरफ हा हा कार मचाकर
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