चौराहों पर मूर्तिवत
पुस्तकों में छपा
स्कूल की दीवारों पर चित्रित
कभी कभी सभागारों में
मैं उसे संसद की दीवारों पर भी
देखती हूँ
उसके उजले कपड़े
कुछ काले दिलों पर भी चढ़े देखती हूँ
उसकी टोपी सार्वजनिक हो गई है
मैं देखती हूँ अब आम हो गई है
दिल्ली में एक मैदान है उसके नाम
हर शहर में एक सड़क मिलती है गाँधी के नाम
राजघाट पर भजनों के बीच उसे श्रद्धांजली चढ़ाते हैं
उसे भारतीय कह लोग गौरान्वित होते हैं
देखती हूँ मैं उसे, और सोचती हूँ
वो फ़क़ीर, जो हर नोट पर छपा मिलता है
उसे कहाँ ढूंढू , वो जीवन में कहाँ उतरता है
गाँधी अब सिर्फ मिसालों में सिमटा मिलता है
भाषणों में कहा मिलता है
अब गाँधी सिर्फ चौराहों पर सजा मिलता है
साल में दो बार कलेंडर की
तिथियों में छिपा मिलता है
मनीषा
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