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माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Wednesday, November 2, 2011
उजले अन्धेरे
तू पूछता है की तेरी ज़िंदगी मे है ये अंधेरा कैसा
बता इन अंधेरो से है तुझे डर कैसा
इनमे चमकते है सैकड़ो सितारे
तू खोजता है सूरज कैसा
माना तेरी राहो मे है बहुत रोड़े
है जिगर तुझमे तो बना ले
उन्हे मील का पत्थर
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