तन्हा तन्हा चलते रहे
एक सफर से हम भी गुजरते रहे।
दिन दिन बुनते रहे कुछ रेशमी धागे
रात भर गिरह खोलते रहे।।
ना समझा इश्क ने कभी हमें
ना हम समझ सके कभी इश्क को।
इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां
उस तरफ वो चुप्पियां सुनते रहे।।
हाथ थाम कर इस तरह बेबस किया
कि हम ना किसी काबिल रहे।
इस तरह गुज़रा उम्र का सफर
हम राह तकते रहे और वो आते ही रहे।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू