तुमने बंद कर दिए
तुम तक आने के सब रास्ते
अब किस हवाले से
हक जताते हो।।
मैं कोई पुराना वृक्ष नहीं
आंगन का
जो प्रस्तुत हो रहूं
हर प्रहार का
और भीतर ही भीतर
हर गाड़ी कील का
दंश सहती रहूं
ताकि तुम उनसे बांधी रस्सी पर
सुखाते रहो अपने दंभ
और मेरे तने पर कुरेदते रहो
अपने प्यार की परिभाषाएं।।
मीत मेरे मैं क्षण क्षण
मिलती इस उपेक्षा से
छलनी हो चुकी हूं।
मेरे पास कोमल स्पंदन महसूस
करने की सभी संभावनाएं
मिट चुकी हैं।
तुम्हारी क्या अपेक्षा है
अब मुझे नहीं मालूम
तुम्हारे शाब्दिक तीरों और
क्रूर कटाक्षों की ग्लानि को
पुनः पुनः सहलाने को
मैं तैयार नहीं हूं।
बहुत देर हो चुकी मेरे मीत
इस जीवन संध्या तक
तुम्हारे संग और चलने को अब
मैं तैयार नहीं हूं।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू