मेरी कूची के सब रंग फीके
Pages
Thursday, November 27, 2025
मेरी कूची के सब रंग फीके
वो एक पल था
वो एक पल था
तुम जब भी लिखना सतरंगी प्रीत लिखना।।
वो लिख रहें है नफरतें तो लिखते रहें
Thursday, November 13, 2025
हम थे क्या और क्या हो गए
हम थे क्या और क्या हो गए
इस बड़े से आसमां में खो गए।।
गिनते बैठे सिक्के वक्त बेवक्त
इस भरे बाजार में तन्हा हो गए।।
इतना रोए तेरे जाने के बाद
अब आंसू भी सूख कर ख़ाक हो गए।
बसा ली हैं इतनी दूर बस्तियां
अपने ही गली कूचे में सब गैर हो गए।।
ना था ना है कोई अपना खैरख्वाह
अपने आंगन के दरख़्त भी बाड़ हो गए।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
Sunday, November 9, 2025
जी मैं झूठ बेचता हूं
जी मैं झूठ बेचता हूँ
साफ सुंदर लचीले झूठ बेचता हूं।।
सबके काम आएं जो वह करामात बेचता हूँ
जी मैं झूठ बेचता हूँ।
सत्ता की कुर्सी हो
या नौकरी की अर्जी हो
आइने से साफ, सफेदपोश
झूठ बेचता हूं।।
रोटी की हो गुहार
या हो बीवी की दरकार
छोटे से बड़े या बड़े से बड़े
सबके काम आएं ऐसे
झूठ बेचता हूं।।
आंकड़ों से नाप लीजिए
किसी तराज़ू में तौल लीजिए
विश्वास अंधविश्वास के उस पार
जो निभ जाएं ऐसे विचार बेचता हूं
जी मैं एक दम शुद्ध झूठ बेचता हूँ।।
जी आपको सच की है दरकार ?
यह क्या मांग बैठे आप सरकार?
आज कल उसे कौन पूछता है ?
उसका एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलता दाम।।
क्या बात कर रहे हुज़ूर
खिला खिला चुनावी मौसम है
आप तो या लीजिए नए वादों
अ अ ...मतलब जी नए झूठों का पुलिंदा।।
इस बार फिर जीत जाएंगे आप
बना लीजिएगा नई सरकार
खड़े कर लीजिएगा एक दो बंगले
ले लीजिए नई चमकती मोटर कार ।।
जी लीजिए सुंदर सजीले झूठ
एक पर दो मुफ्त
पहुंचिएगा सीधा संसद
सच तो है घाटे का सौदा।।
सच बस यही कहता हूं
जी मैं नहीं करता सच का व्यापार
जिसकी किसी को नहीं है दरकार
जी मैं सिर्फ विशुद्ध झूठ बेचता हूं।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू