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Saturday, August 26, 2023

काश! मैं एक भेड़ होती

 काश! मैं एक भेड़ होती

लकीर की फकीर

चलती चुपचाप,

बिना प्रश्न, सिर झुकाए

एक दायरे में रहती

लक्ष्मण रेखा के भीतर

जीती एक आम सी जिंदगी

खटती रहती चूल्हे के आगे 

और चलती नटनी सी

 रिश्तों की रस्सी पर

चारदीवारी की धूरी पर घूमती

चिंता होती केवल अब क्या पकाना है

ओह चादर फिर बदलाना है

खिड़की पर की धूल झाड़नी है

सवेरे सबको दफ्तर स्कूल जाना है

पड़ोसन की कटोरी भर चीनी लौटाना है

एक सरल सा जीवन 

अपने में सिमटा हुआ मैं जीती

काश मैं भेड़ होती

तुम्हारे मन की होती तब

तुमको मैं कितनी पसंद होती।।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

Friday, August 11, 2023

तुम्हारा साथ

 किसी ने रख दिया हो दुर्दिन में 

जैसे कंधे पर हाथ

कुछ ऐसा ही है तुम्हारा साथ।।

 परिभाषाओं में जो नहीं बंधता

मर्यादा के परे भी जो नहीं जाता

कुछ ऐसा ही है तुम्हारा साथ।

मन करता है तुम्हारी हथेली पर 

अपनी हथेली रख दूं

और खेलूं तुम्हारी अंगुलियों से 

और कहूं तुम बांट लो अपना दर्द।।

तुम्हारे सिर को अपनी गोद में रख कर 

सहलाते हुए तुम्हारे बाल 

तुम्हारी सुनूं और कुछ अपनी कहूं

दिन भर की थकन के बाद 

सिर टिकाने को जो मिलता है

उस कांधे सा है तुम्हारा और मेरा साथ। 

शब्दों की परिधि से अलग

कुछ अपना सा ।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

Wednesday, August 9, 2023

तुम्हे क्या समझूँ ?

 तुम्हे क्या समझूँ ?

और कैसे ?

अपने से हो

पर पराए लगते हो।

कभी रख देते हो,

मेरी आँखों में आकाश।

कभी कदमों तले बिछी

धरती भी छीन लेते हो।

तुम्हें ओढ़ लेती हूँ

हर रात ख़्वाब बुनने से पहले,

तुम हो कि मेरी नींद भी छीन लेते हो।

रोज़ दिलासों से सी लेती

हूँ अपना उधड़ा हुआ रिश्ता,

तुम हो कि फिर

नए सिरे से चीर देते हो।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

Tuesday, August 8, 2023

लेखनी मेरी

 अक्सर पूछ लेते हैं लोग

तुम लिखती हो तो इसे छपवाती क्यों नहीं?

उन्हें क्या बोलूं कागज़ पर स्याही से नहीं

छापनी मुझे अपनी अभिव्यक्ति।

मुझे छापनी है मानस पर 

मानस की अपनी भाषा में

जिनमे बू तो हो मेरी अभिव्यक्ति की

लेकिन प्राण मानस के हों

कभी तो लिखूंगी एक सार्थक रचना 

जो किसी मन में उतर कर बस जाएगी।

जाने कब लिखूंगी वो एक कविता, तब तक 

शब्दों को ढलने दो,

जैसे ढलते हैं दिन और रात ।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

Monday, August 7, 2023

मुझे उस दर जाना भी नहीं है

 मुझे उस दर जाना भी नहीं है

पर मेरा ठिकाना भी वही है।

कर तो लूं किस्मत पर भरोसा

पर ये रास्ता पहचाना भी नहीं है।।

मुझे उस दर जाना भी नहीं है।

पर मेरा ठिकाना भी वहीं है।।


खंडहर है तो तब भी वो भी मेरा है

बीते दिनों का अफसाना भी वहीं है

कर तो दिया उसे नजर किसी और की

पर मेरा आशियाना भी वही है।।

मुझे उस दर जाना भी नहीं है

पर मेरा ठिकाना भी वहीं है।


लिख कर कर देती हूं जिस्म से दूर 

दर्द का कोई पैमाना तो नहीं है।।

कर तो लिया है पत्थर दिल 

पर ये फैसला मर्ज़ी मुताबिक भी नहीं है।।

मुझे उस दर जाना भी नहीं है

पर मेरा ठिकाना भी वहीं है।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

Friday, August 4, 2023

इस रात को खबर क्या

 इस रात को खबर क्या दिन की बेचैनियों की

लम्हा लम्हा कर के गुजरती जाती है।।


रक्खी हैं पेशानी पर संभाल के उम्र की कुछ लकीरें

जिंदगी बस यूं तितर बितर सी कटती जाती है।।


उस से मिलने और बिछड़ने का सुरूर कुछ ऐसा है

दोपहर ख़ामख़ाह शाम के इंतजार में निकल जाती है।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू