माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
जो तुम गए होली के रंग सारे कहीं उड़ गए
एक दिन में कभी इतनी तो उदासी तो ना थी
बस तुम्हारे वो ठहाके कहां गुम गए?
दिन उगता है रात ढलती है
पल पल चलता है ये जहां दुनिया रुकती तो नहीं
ये मेरे ज़हन के सारे सितारे क्यों बुझ गए ?
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
तुम लौटो तो लौटे
बसंत का मौसम
मान मनुहार का मौसम
लौटें रौनकें, रतजगे और
बज उठे फिर उदास पड़ा सरोद
तुम से कितना कुछ कहना है
तुम से कितना कुछ सुनना है
पहचानें , उधड़े से कुछ रिश्ते
कुछ हक अदा करें हम तुम
कुछ लड़ें और कुछ झगड़े भी
पुराने नाम दोहराए थोड़ा प्यार जताएं
ये जो नई नई कोपलें आई है
पीढियों के वृक्ष पर
उनसे कुछ परिचय हो अपनापा हो
तुम लौटो तो सही
अपने घर अपने देस
एक पल को भी।
#गुफ्तगू