गौमांस और पुरुस्कार छोड़ो
जो मार दिया तुमने सरेआम
उस निर्दोष इंसान की बात करो
मनीषा
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Thursday, October 15, 2015
वाह रे ! इंसान
अजन्मी कन्या के नसीब में गर्भ में मुक्ति
फिर नौ दिवस कन्या रूप देवी भक्ति
वाह रे ! इंसान
कर्म और भगवान दोनों की चुप्पी
थोड़े दान थोड़ी भक्ति पांच वक्त की नमाज़
पाप मुक्ति कर दी कितनी आसान
वाह रे ! इंसान
हज तीर्थ सब जन्नत के द्वार
पंडित मोमिन पादरियों ने
थमा दी एक कुंजी आसान
वाह रे ! इंसान
जीव हत्या तो पाप
संगसार तो जन अधिकार
धर्म हत्या हुई कितनी आसान
वाह रे ! इंसान
क्षुधा विवश करती तो जानवर लेता है प्राण
लालच लोभ बना देती है मनुष्य को हैवान
फिर भी बताता है खुद को महान
वाह रे ! इंसान
मनीषा
फिर नौ दिवस कन्या रूप देवी भक्ति
वाह रे ! इंसान
कर्म और भगवान दोनों की चुप्पी
थोड़े दान थोड़ी भक्ति पांच वक्त की नमाज़
पाप मुक्ति कर दी कितनी आसान
वाह रे ! इंसान
हज तीर्थ सब जन्नत के द्वार
पंडित मोमिन पादरियों ने
थमा दी एक कुंजी आसान
वाह रे ! इंसान
जीव हत्या तो पाप
संगसार तो जन अधिकार
धर्म हत्या हुई कितनी आसान
वाह रे ! इंसान
क्षुधा विवश करती तो जानवर लेता है प्राण
लालच लोभ बना देती है मनुष्य को हैवान
फिर भी बताता है खुद को महान
वाह रे ! इंसान
मनीषा
Sunday, October 11, 2015
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
कड़क खादी कुर्तों में सजे हैं
फिर से कतार बांधे खड़े हैं
गली कूचों में नेता अभिनेता
हाथ जोड़े खड़े हैं
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
फिर से कतार बांधे खड़े हैं
गली कूचों में नेता अभिनेता
हाथ जोड़े खड़े हैं
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
कौन सी आपदा पिछली सरकार की वजह से फूटी है
शहर में बिजली पानी की कितनी कमी है
महिला विकास की बात फिर उठी है
एक दुसरे के कच्चे चिठ्ठे गिनाने लगे हैं
किसने किए कितने घोटाले सभी बताने लगे हैं
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
शहर में बिजली पानी की कितनी कमी है
महिला विकास की बात फिर उठी है
एक दुसरे के कच्चे चिठ्ठे गिनाने लगे हैं
किसने किए कितने घोटाले सभी बताने लगे हैं
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
लगा लेते हैं जन गण को सीने से
उठा लेते हैं गोद में गली के बच्चो को प्यार से
लुभा रहे हैं कातिल मुस्कान से
चाशनी सी टपक रही है इनकी बातों से
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
उठा लेते हैं गोद में गली के बच्चो को प्यार से
लुभा रहे हैं कातिल मुस्कान से
चाशनी सी टपक रही है इनकी बातों से
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
भाषणों में गरजते हैं
विरोधियों पर बरसते हैं
करते हैं सियासत बात बेबात पे
कभी मंदिर मस्जिद कभी गौमांस पे
आरोप प्रत्यारोप के बादल हैं बहार पे
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
मनीषा
विरोधियों पर बरसते हैं
करते हैं सियासत बात बेबात पे
कभी मंदिर मस्जिद कभी गौमांस पे
आरोप प्रत्यारोप के बादल हैं बहार पे
लगता है
फिर चली है आज मेरे शहर में हवा चुनाव की
मनीषा
Thursday, October 8, 2015
एक पुरानी एलबम में
एक पुरानी एलबम में कैद रखे हैं कुछ लम्हे
जब ज़िंदगी से कुछ वक़्त मिलता है तो जी लेते है
तस्वीर दर तस्वीर
कुछ मुस्कुराहटें लौट है होंठो पर
कुछ आँसू पलकों में झिलमिला जाते हैं
मनीषा
जब ज़िंदगी से कुछ वक़्त मिलता है तो जी लेते है
तस्वीर दर तस्वीर
कुछ मुस्कुराहटें लौट है होंठो पर
कुछ आँसू पलकों में झिलमिला जाते हैं
मनीषा