मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Sunday, July 26, 2015
जो मेरा है
जो मुझमे है मेरा है
क्या उसे याद करूँ
भूलूँ भी तो कैसे
खुद स्वयं को भी क्या भूला
या याद किया जा सकता है
मनीषा
‹
›
Home
View web version