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Tuesday, February 17, 2015

तुमसे मेरा नाता क्या

तुमसे मेरा नाता क्या
तुम पर मेरा अधिकार क्या

मन की पीड़ा को
तिनके सा आराम मिला
तेरे द्वारे आ पल भर को
तपती धूप से विश्राम मिला
मन का मन से ये नाता क्या

तुमसे मेरा नाता क्या
तुम पर मेरा अधिकार क्या

तेरी एक मुस्कान ने
जाने कितने इन आँखों के अश्रु धोए
तेरी मीठी बातों ने
जाने कितने मन पर मेरे हास बोए
शब्दों का शब्दों से ये रिश्ता क्या

तुमसे मेरा नाता क्या
तुम पर मेरा अधिकार क्या

कृतार्थ तुम्हारी तुमने जो
मेरे पग से कंटक बीने
साथी बन तुम जो
दो पग साथ चले
जन्मों  का जन्मो से वादा क्या

तुमसे मेरा नाता क्या
तुम पर मेरा अधिकार क्या
मनीषा 

Monday, February 2, 2015

इन आँखों ने

इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं

जाने कितने सुबह औ' शाम देखे हैं
रिश्तों के बदलते आयाम देखें हैं
जाने कितने जलते बुझते चिराग देखें हैं

इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं

तेरी आँखों में जो उतर आए थे
वो  सावन कई  बार  देखें हैं
जाने कितने सवाल बेज़ुबान देखें हैं

रस्मों रिवाज़ों में दम तोड़ते
अरमान हज़ार देखें हैं
दुनियावी आँखों में तंज हज़ार देखें हैं

इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं


मासूम कलियों के
मज़ार बेशुमार  देखें हैं
मोहब्बतों के इम्तिहान हज़ार देखें हैं
'
इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं

नफरतों के कारोबार
बदस्तूर चलते तमाम देखें हैं
जिस्मानी भूख के बाज़ार हज़ार देखें हैं

इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं

और क्या बाकी रहा है यहां  अब
देखने दिखाने  को ऐ  खुदा
तेरे इंसान की शक़्ल में  हैवान हज़ार देखें हैं

इन आँखों ने मंज़र तमाम देखे हैं
मनीषा 

Sunday, February 1, 2015

सप्तपदी के वो सात पग

हम मिलते हैं
सही गलत की सरहद के उस पार
जहां पाप और पुण्य एक हो जाते हैं
सभी परिधियों  नीतियों के उस पार
जहाँ  भेद विभेद मिट जाते हैं
बस तुम और मैं
स्वयं में गुम
कर्ता  और कर्म से परे
कुंडलियों और सितारों के उस पार
और चलते हैं सृष्टि के साक्ष्य में
सप्तपदी के वो सात पग
और मिट जाता  है फिर
 तुम और मैं का यह फर्क....
मनीषा 

कहते तो हो जाओ

कहते हो कि  जाओ , मैं तो चली ही जाऊँगी
तेरी तन्हाईंयों  में कसक  छोड़ जाऊँगी
तेरे मन पर अपनी बातों का असर छोड़ जाऊँगी
कहते तो हो जाओ
और मैं तो चली ही जाऊँगी
तेरे सीने में इक खलिश छोड़ जाऊँगी
तेरे बदन में अपनी सांसो की महक छोड़ जाऊँगी
कहते तो हो जाओ
और मैं तो चली ही जाऊँगी
तेरी महफ़िलों  में इंतज़ार छोड़ जाऊँगी
तेरी नज़र में अपनी मुस्कान छोड़ जाऊँगी
कहते तो हो जाओ
और मैं तो चली ही जाऊँगी
तेरी हथेलियों में अपना नाम छोड़ जाऊँगी
तेरी आवाज़ में अपनी पुकार छोड़ जाऊँगी
कहते तो हो जाओ
और मैं तो चली ही जाऊँगी
तेरी बाँहों में अपनी 'जान' छोड़ जाऊँगी
मनीषा