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Saturday, November 23, 2013

आदत

तेरे आँगन की छाँव  नहीं सहन होती
मुझे धूप की तपिश की  आदत सी  हो गई है

कुछ टूटा सा था तो
मन के आगे कुछ सलाखें सी बो दी थी
कुछ मौसम पहले
इन बरसातों में पहरों  की उसे आदत सी हो गई है

अब मत खटखटाना मेरा द्वार
मत पुकारना मुझे
अपने भावुक बोलों से
मुझे सन्नाटों कि आदत सी हो गई है

बहुत दूर निकल आई हूँ इन राहों में
अकेले चलते चलते
अब तेरी आदत कुछ छूट सी गई है

बड़ी देर से आए हैं
वो सुलझाने बिगड़ी बात
अब तो इस दर्द की आदत सी हो गई

मन पर लगी  सांकल है
बहुत भारी
अब किवाड़ खोलने में डर  लगता है
इन दस्तकों की आवाज़ से काँप  जाती हूँ
तन्हाईयों  कि आदत सी हो गई है
मनीषा

Friday, November 22, 2013

व्यवहार

कैसे बिसरा दूँ
जो थी आप बीती पुरानी
नए छोर को कैसे पकडूँ
कैसे लिखूँ  फिर से
रिश्तों की  पुन: कहानी
अश्रु भरे नयनों  से
बह चुका  जो विश्वास
फिर से कैसे ह्रदय में
बसा लूँ क्षण में
प्यार की थी
एक कोमल सी डोर
अब बिन गांठ कैसे उसे जोडूं
नही मिलता है
अब वो भोला विश्वास
अनुभव कि चिता पर
होम हुआ वह कोमल अहसास
अब लाऊं कहाँ से वो पहले सा प्यार विश्वास
जब चुक चुका सारा व्यवहार 

Thursday, November 7, 2013

शब्द

जीवन के ताने बाने को
मन भावुक उतारता जाता है
शब्दों में
पर फिर भी इन तालों में
बांध कहाँ पाता  है
हर उदगार
पीड़ा में
प्रीती में
दे देते शब्द
एक आधार
लेखनी में उतर जाता
विषम जीवन का संग्राम
मनीषा 

Wednesday, November 6, 2013

दीपमाला

स्नेह भरे दीप
कितनी आशा भरे
इस दीपमाला में
जाने कितने अश्रु जले
धूमिल निशा हारी  सी
उज्ज्वल ज्योति से भरी
नभ तक सीमिति
धरती पर उमंग भरा
उजास उदित है
दुःख कोने कोने में छिपता फिरे
बस एक इस रात
सुख कामना का वास भरे
हर मन खिले
घर घर स्वागत दीप जले
मनीषा