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Friday, November 30, 2012

गरीब का ईमान


सोचता हूँ ईमान बेच कर एक सूट सिल्वा सकता अगर
मगर गरीब का ईमान भी तो सस्ते में ही  बिक जाता है
उतने दाम में शायद आ जाए भर पेट एक शाम की रोटी
दिन भर गुहार लगी मैंने "मैं भूखा हूँ " कह दया याचना की मैंने
पर सबने मुझे आवारा शराबी समझा
मेरे ठिठुरते तन को नशे में झूमता समझा और बढ़ गया
हर सेठ कह कर आगे बढ़ जाता है "कुछ काम करो भाई "
पर काम के लिए चाहिए एक निश्चित पता
और पेट में एक समय की रोटी
मैं आज भी भूखा हूँ , कल भी भूखा ही था
कब तक ये सर्द रात बर्दाश्त करूँ  मैं
जाने कौन था जो इन सब को ठग गया
और दान को पाप कर गया
कल सोचता हूँ क्या करूँ मैं
फिर से दया याचना या फिर छिना झपटी की राह लूं मैं
सोचता हूँ कल क्या करूँ मैं

Thursday, November 29, 2012

तुमसे वायदा है मेरा


तुमसे वायदा है मेरा 
तुमसे एक नाता था मेरा 
संग का, मन का 
अनकहा सा 
झुटला सको तो झुटला देना 
भुला सको तो भुला भी देना पर याद रखना 
तुम मुझ पर चाहे कितने किवाड़ बंद कर दो 
चाहे जितनी दूरियां नपवा लो 
खडी कर दो चाहे दीवारें  और 
खिंचवा लो बहुत से दायरे 
बदल लो तुम चाहे कितने शहर 
और मकान 
मैं  तुम्हारे भीतर एक आवाज़ सी 
कभी यूँ ही  कौंध जाऊँगी 
कभी यूँही भीड़ में नज़र आ जाऊंगी, एक धोखे सी  
जानती हूँ इस एहसास को 
खवाब ख्याल मान  कर तुम 
सिर झटक व्यस्त कर लोगे स्वयं को 
लेकिन तुम्हारे मन के कोने में एक वेदना बन सदा के लिए बस जाऊँगी मैं 
हर डूबते और चढ़ते सूरज की लालिमा में याद आऊँगी तुम्हे 
बस इतना सा एक वायदा है मेरा तुमसे 

दस्तक





बार बार उन बंद दरवाजों पर  दस्तक दे लौट आती हूँ 
बार बार अपनी वेदना से विवश फिर उसी देहरी पर लौट जाती हूँ 
अब परिचित सा लगता है वो दरवाज़ा 
खुलता तो नहीं है 
पर जैसे हर बार पूछ लेता है 
"कैसी हो तुम , फिर लौट आई हो तुम 
तुम एक दम मेरे जैसी हो 
अपने भीतर बंधी गांठो से विवश 
और मैं अपने भीतर मजबूती से लगी सांकल से "
मैं फिर धीमे से कभी जोर से दस्तक दे रूकती  हूँ देर तक 
और पौ  फटने से पहले लौट आती हूँ 

Tuesday, November 20, 2012

तुम ध्यान मत देना इन पर



हर साल चला आता है ये दिन
 हर साल सोचती हूँ
इस बार नहीं हूँगी उदास 
इस बार करूंगी मुस्कुरा के तुम्हे याद 
पर हर साल खुद ही चले आते हैं पलकों में ये आंसू 
और दिल में एक टीस सी उठ जाती है 
तब नज़र जाती है दीवार पर टंगे कैलेन्डर पर 
और तारीख़ नश्तर सी दिल में उतर जाती है  
साल बदले मौसम बदले 
बदले जाने कितने पल छिन 
बहुत कुछ बदला जीवन में भी 
कुछ बीता अच्छा कुछ बीता बुरा भी 
हर पल तुम याद आई 
कभी लगा तुम साथ हो मेरे 
कभी लगा जाने कहाँ खो गई तुम 
कभी तुम्हे हंस कर याद किया 
कभी तुम्हे एक बार फिर छूने का जी किया 
कहते हैं जी ऐसे बिछड़ जाते है 
हर साल लौट के फिर आते हैं इस दिन 
देहरी पर देखने कैसे जीते हैं लोग उनके बिन 
इसीलिए सोचती हूँ की इस साल मुस्कुरा कर करूं  स्वागत तुम्हारा 
पर ये बेईमान आंसू फिर भर ही आये हैं 
तुम ध्यान मत देना इन पर 
तुम आओ जब आज इस देहरी पर यहाँ से खुश ही जाना 
मैं खुश हूँ तुम्हारे बिना जीवन अधूरा सा तो है 
लेकिन फिर भी मैं खुश हूँ अपने आप में मैं पूरी हूँ 
तुमने जो सिखाया था बताया था उस राह को थामे चलती हूँ मैं 
जो रिश्ते तुमने बोए थे संजोये थे 
उन रिश्तों ने सम्भाला मुझे और मैंने भी संजोये हैं कुछ नए पुराने रिश्ते 
तुम्हारी और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए 
तुम आओ जब आज इस देहरी पर यहाँ से खुश ही जाना 
तुम ध्यान मत देना इन पर