ये किस शहर में ला छोड़ा है मुझे मेरे खुदा
ना रिवायतों का कुछ पता है न भाषा की पहचान
हर शख्स ओढ़े हुए है कोई नकाब
ना अपनों का ही पता है न परायों की पहचान
मेरे सच को भी झूठा बतलाया है हर किसी ने
छीन ली है आज मेरे आईने ने भी मेरी पहचान
इतनी तन्हा तो मैं उससे से बिछड़ने पर भी नहीं थी
जितनी तनहा उस से मिल कर हुई हूँ आज