वो राम की लीला, कहाँ खो गयी
वो दरियाँ बिछाना, वो सेट सजाना
वो दिन दिन भर डायलाग के रट्टे लगाना
वो मुहल्ले के अंकल का हनुमान बनना
और बच्चो का वानर सेना बन जाना
वो सीता की वाटिका कहाँ खो गयी
वो राम की लीला कहाँ खो गयी
वो चंदों की घोषणा वो इनामों की उद्घोषणा
वो दुर्गा जी की आरती, वो गदा घुमाना, वो तीर चलाना
वो दशरथ की मौत पर पूरी सभा का शोकाकुल हो जाना
वो मैदान के उस पार तक हनुमान की उड़ान कहाँ खो गयी
वो रावण के ठहाके वो जटायु का बलिदान
वो नानी का राम सीता की जोडी पर न्योछावर दे आशीष लेना
वो रात रात भर मूँगफली खाना, सहेलियो के लिए दरी पे जगह बचाना
वो मास्टरजी के हारमोनियम पर बजती रामलीला की चौपाईयाँ कहाँ खो गयी
सब लोग कह्ते है तरक्की हो गई
इस दिल्ली के मोहल्लों से पर वो राम की लीला कहाँ खो गयी